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Raids at 20 NIA locations on Dawood Ibrahim's close friends in Mumbai

जो औरतें पति को यौन सुख देने में नखरे करती हैं, घरेलू काम करना नहीं चाहतीं; वे सिरदर्द का बहाना ओढ़ लेती हैं

बचपन में नानी को कई बार अंधेरे कमरे में बंद देखा। बंद किवाड़ से कराहने की आवाज आती। बाहर निकलती तो आंखें सूजी होतीं। सिर पर कपड़े की पट्टी ऐसी कसकर बंधी हुई कि खुलने के बाद भी निशान रहे। सिरदर्द के उस पूरे दौर में घर पर सुई-पटक सन्नाटा होता। नानी से खूब प्यार के बावजूद उनका दर्द मुझे हैरान करता। ‘सिरदर्द ही तो है- किसी भी गोली से चला जाएगा।’ बाद में जाना- ये माइग्रेन था।

माइग्रेन रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक, इस जानलेवा दर्द के कुल मरीजों में करीब 85% औरतें हैं। तो हुआ ये कि सिर के आधे हिस्से में मचने वाले इस तूफान को जनाना बीमारी का दर्जा मिल गया, और जनानियों की तरह ही उनका दर्द भी अंधेरे कमरे में बंद होकर रह गया।

हाल ही में अमेरिकी दवा कंपनी फाइजर ने माइग्रेन की गोलियां बनाने वाली कंपनी ‘बायोहेवन फार्मास्यूटिकल’ को खरीदा। लंबी-चौड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई, जिसमें दवा की बात हुई, लेकिन दर्द को एकदम भुला दिया गया। इस बात पर परदा डाल दिया गया कि जानलेवा बीमारियों का इलाज खोज पाने वाले मेडिकल साइंस को क्यों अब तक इस मर्ज का इलाज नहीं मिल सका।

इसकी शुरुआत होती है 18वीं सदी से। मिस्र में इस रहस्यमयी सिरदर्द पर बात शुरू हुई और तुरंत ही इसे कमजोर दिमाग औरतों की बीमारी कह दिया गया। माना गया कि जो औरतें घर के कामकाज से बचना चाहती हैं, या पति को यौन-सुख देने में नखरे करती हैं, वो सिरदर्द का बहाना ओढ़ लेती हैं। मॉडर्न मेडिसिन के जनक हिपोक्रेटिस ने यहां तक कह डाला कि माइग्रेन एक किस्म की दिमागी बीमारी है, जो उन पर कब्जा करती है, जिनकी कोख आवारा हो जाए।

इसी दौर में यूटरस समेत महिलाओं के रिप्रोडक्टिव अंगों को डिफाइन करते हुए कहा गया कि ये सारे अंग एक जानवर के भीतर जानवर की तरह हैं। स्त्री अपने-आप में एक पशु है, जिसके भीतर इन अंगों का होना उसे और खूंखार बना देता है।

यूनानी डॉक्टरों ने परचे लिख डाले कि यूटरस के आवारा होने पर महिलाओं में कैसे लक्षण दिखते हैं। कोख अगर ऊपर की तरफ जाने लगे तो मरीज में मिरगी, बेहोशी जैसे संकेत दिखते हैं, वहीं कोख नीचे सरके तो माइग्रेन या हिस्टीरिया हो जाता है।

ये तो हुए बीमारी के लक्षण। अब बाकी रहा इलाज, तो शानदार शराब पीते हुए या ओपरा हाउस में बैठे हुए मर्दों की बिरादरी आपस में चर्चा करने लगी। फ्रांसीसी डॉक्टर फ्रांकॉइस बॉइसर (François Boissier) के साल 1773 में छपे पर्चे ने मेडिकल बिरादरी में खूब चर्चा बटोरी। बॉइसर ने लिखा था कि यौन सुख से वंचित स्त्रियां ही सिरदर्द की मरीज बनती हैं। साइंस जर्नल मेडिकल न्यूज टुडे की एक रिपोर्ट में डॉक्टरों के हवाले से दर्द को शांत करने के तरीके सुझाए गए। इस इलाज में स्त्री का जबरन किसी पुरुष से संबंध बना दिया जाता। ये पुरुष कोई भी हो सकता था- लंपट पड़ोसी से लेकर बावर्ची, सफाईवाला या फिर कोई भी दूसरा।

कोख पर कंट्रोल का एक और तरीका भी था। सिरदर्द से उल्टियां करती मरीज को डॉक्टरों ने कहा कि उन्हें लगातार प्रेग्नेंट रहना चाहिए। इससे दिमाग के साथ-साथ कोख भी काबू में रहेगी।

आगे चलकर ऑस्ट्रिया के मनोचिकित्सक सिगमंड फ्रायड ने खुलासा किया कि माइग्रेन स्त्रियों की बीमारी नहीं, बल्कि कई बार मर्द भी इसकी गिरफ्त में आ जाते हैं। ये बात अलग है कि पुरुषों में इस दर्द का जिम्मेदार औरतों को माना गया।

जिन मर्दों की औरतें कलह करती हैं, रोटी-बोटी पकाने से जी चुराती हैं, या फिर जो कला-संगीत में पति की बराबरी चाहती हैं, उनके पति बीमार होते चले जाते हैं। तो इस तरह से औरतों का क्रिएटिव होना भी बीमारी की वजह बनने लगा।

19वीं सदी तक यही हाल रहा। आगे चलकर हालात कुछ बदले, लेकिन माइग्रेन की वजहें और इलाज अब भी कुहासे में हैं। दर्द से बेहाल औरतें कभी काम पर जाना मिस कर देती हैं, तो कई बार नौबत रिश्ता टूटने तक भी आ जाती है। वैसे भी शैंपू-धुले बालों की बजाए बाम से महकती-कराहती औरत भला किस मर्द को पसंद आएगी!

साइंस डायरेक्ट जर्नल की एक स्टडी के मुताबिक अगर युवा औरत माइग्रेन की मरीज है, तो बहुत मुमकिन है कि कुछ सालों के भीतर तलाक के हालात बन जाएं। इंपेक्ट ऑफ माइग्रेन ऑन द फैमिली नाम की स्टडी में 13,064 जोड़ों से बातचीत हुई, जिसमें आधे से ज्यादा ने सिरदर्द से परेशान बीवी से अलग होने की बात की।

अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के एक जर्नल JAMA इंटरनल मेडिसिन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक अकेले अमेरिकी कंपनियों को ही हर साल 13 बिलियन डॉलर का नुकसान माइग्रेन के चलते होता है। भारत में इस नुकसान का गणित कुछ कच्चा है, लेकिन न्यूरोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया के मुताबिक हमारे यहां भी भारी-भरकम घाटा इस अनसुलझी बीमारी के चलते हो रहा है।

फाइजर ने हाल में माइग्रेन पर रिसर्च की बात की, लेकिन इस पर बड़े लेवल पर रिसर्च या दवा लापता है। वजह? औरतों को टुइयां-से दर्द पर भी रोने की आदत होती है। साथ ही वे मर्दों का ध्यान खींचने के लिए दर्द की नौटंकी करती हैं। ये बात गली-चौराहे पर खड़े किसी छोरे ने नहीं, बल्कि अमेरिकी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने कई बार कह डाली।

इंस्टीट्यूट ने बाद में भूल-सुधार करते हुए सारा ठीकरा हॉर्मोन्स पर फोड़ दिया। इसके मुताबिक हॉमोन्स में घट-बढ़ के चलते दिमाग के खास हिस्से पर असर पड़ता है, जिसके कारण दर्द होता है। सौ मर्ज की एक दवा- की तर्ज पर महिलाओं से जुड़े हर मामले को हॉर्मोन्स से जोड़ा जाने लगा।

तो कुल मिलाकर ये रहस्यमयी सिरदर्द औरतों की बीमारी बनकर रह गया। अब नए जमाने की औरतें इसे बदलने के सपने देख रही हैं। वे अंधेरे कमरे में सिर पर ठंडी पट्टी रखे ख्वाब देखती हैं- उस दुनिया का, जहां दर्द का बंटवारा न हो। जहां सिरदर्द उन्हें मनोरोगी या यौनरोगी न बना दे। उस दुनिया का, जहां ब्रेस्ट कैंसर होने पर बगैर हकलाए ब्रेस्ट शब्द बोला जा सके। और मेनोपॉज जहां उन्हें ‘एक्सपायर्ड प्रोडक्ट’ की कतार में खड़ा न कर दे।