जालंधर के बाहरी इलाके में बसे तल्हण गांव में भी इस बार चुनावी सरगर्मी जोरों पर है। मकई और गेहूं के विशाल खेतों वाले इस गांव में ईंट वाले लगभग सभी घरों में चुनाव में उतरे उम्मीदवारों के बड़े-बड़े होर्डिंग्स इसे एक नया रूप दे रहे हैं।
तल्हण के भीतर जाते-जाते यहां के चार गुरुद्वारों में से एक की ओर जाने वाली सड़क डामर और कंक्रीट से टाइल्स लगे रास्ते में तब्दील हो जाती है। इस बदलाव के बारे में ग्रामीणों का कहना है कि यह देश के सबसे प्रतिष्ठित गुरुद्वारे को खास दर्जा मिलने पर एक सम्मान की तरह है।
बाबा निहाल सिंह गुरुद्वारा दोआबा में है, एक ऐसा इलाका है जहां से बड़ी संख्या युवा पलायन करते हैं। यहां एक ऐसा दृश्य भी देखने को मिलता है जो सामान्य धार्मिक चढ़ावे से अलग होता है।
गुरुद्वारा जाने वाले रास्ते पर फूलों और अगरबत्तियों के बजाय छोटे-छोटे खिलौना हवाई जहाज बिकते हैं जिनकी कीमत 100 रुपये से लेकर 500 रुपये के बीच होती है। विमान के ये छोटे-छोटे मॉडल विदेश जाने के लिए वीजा की चाहत रखने वाले लोग अथवा जो पहले ही वहां जा चुके हैं वह अर्पित करते हैं।
मोगा के 22 वर्षीय देवनदीप सिंह ने कहा, ‘सरकार ने हमें पर्याप्त मौके नहीं दिए हैं। यहां तक कि गुरुद्वारे तक जाने वाली सड़क भी श्रद्धालुओं ने ही बनाई है। हम यहां विदेश जाने के लिए प्रार्थना करने के लिए आते हैं। मैं भी इसी मनोकामना के साथ आया हूं क्योंकि मैं आईईएलटीएस की तैयारी कर रहा हूं।’
गुरुद्वारा प्रबंध समिति के अधिकारियों का कहना है कि यहां रोजाना हजारों लोग आते हैं। कई श्रद्धालु चढ़ावा के लिए ये हवाई जहाज लेकर आते हैं। हालांकि, वे इस प्रथा को बढ़ावा नहीं देते हैं मगर वे इसके लिए मना भी नहीं करते हैं। इस इलाके में आईईएलटीएस (IELTS) के लिए कोचिंग संस्थान और प्रवासन एवं वीजा परामर्श सेवाओं का एक बड़ा उद्योग भी है, जो गुरुद्वारे के बाहर स्थित दुकानों पर लगे बैनर-होर्डिंग्स से स्पष्ट होता है।
गुरुद्वारा के बाहर लगे होर्डिंग जालंधर की वास्तविक तस्वीर की तुलना में काफी छोटे हैं। जालंधर की रमा मंडी इन कोचिंग संस्थानों और परामर्श केंद्रों का गढ़ है। हर सप्ताहांत यहां पढ़ाई के लिए हजारों की संख्या में छात्र आते हैं और हर महीने औसतन 5 हजार रुपये का भुगतान करते हैं।
वीजा परामर्श फर्म में काम करने वाले एक कर्मचारी का कहना है कि इनमें से अधिकतर छात्र भूस्वामियों के परिवारों और बड़े किसान परिवारों से ताल्लुक रखते हैं, जो बीते चार वर्षों से किसानों के विरोध प्रदर्शन में उलझे हैं।
उन्होंने कहा, ‘इस मसले पर लगातार खींचतान बनी रहने से इन किसानों और उनके बच्चों ने यह तय किया है कि उनकी युवा पीढ़ी अब खेती नहीं करेगी। जिनकी कमाई अधिक नहीं है अथवा जो मध्यम दर्जे के किसान हैं वे अपने बच्चों को विदेश भेजने के लिए अपनी जमीन बेच रहे हैं या फिर कोई दूसरा रास्ता तलाश रहे हैं।’
इस साल की शुरुआत में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के एक अध्ययन से पता चलता है कि साल 1990 से लेकर सितंबर 2022 तक राज्य के ग्रामीणों ने विदेश जाने के लिए 14,342 करोड़ रुपये का कर्ज लिया और 5,639 करोड़ रुपये मूल्य की अपनी संपत्ति बेची। इसमें से 74 फीसदी पिछले छह वर्षों के दौरान हुआ है।
आईईएलटीएस की तैयारी कर रहे एक छात्र पर्तपाल ने कहा, ‘यहां स्थिति गंभीर है। आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार दो साल पहले सत्ता में आई और उसने 30 हजार नौकरियां देने का वादा किया था। हमें नहीं पता अब उस वादे का क्या हुआ। इस बीच, केंद्र सरकार की योजनाएं बमुश्किल काम करती हैं। मैंने अग्निवीर योजना के लिए आवेदन किया था, लेकिन वह भी नहीं हुआ।’
अधिकतर लोग काम के बजाय अपनी इच्छा पूरी करने के लिए भी विदेश जाना चाहते हैं। रमा मंडी के एक प्रशिक्षण संस्थान में दूसरे वर्ष का एक छात्र, जिसने हाल ही में अपना उपनाम बदलकर ब्रिटॉन रख लिया है, कहता है, ‘मैं ब्रिटेन में रहने वाले अपने चचेरे भाई की रील देखता हूं और अब मैं भी वहां जाना चाहता हूं। मुझे क्या करना है यह तय नहीं, मगर मेरा लक्ष्य है कि मैं वहां जाऊं।’
यह भावना तल्हण के अधिकतर युवाओं में है। उनमें से अधिकतर छात्रों ने 12वीं कक्षा के बाद पढ़ाई नहीं की है, मगर वे भी विदेश जाने वालों का अनुकरण करना चाहते हैं। वे विदेशी धरती पर पांव रखने के लिए किसी भी तरह का जोखिम उठाना के लिए तैयार हैं।